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बिहार विधानसभा चुनाव 2020
“आप सीढ़ियाँ चढ़ते रहने पर ध्यान दें, हमें साँपों से निपटने दें !”
यदि चुने जाने वाले लोग सक्षम हुए और चरित्र व प्रतिबद्धता वाले निकले, तो वे एक त्रुटिपूर्ण संविधान को भी सर्वश्रेष्ठ बनाने में सफल होंगे। लेकिन यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो यह संविधान देश की मदद नहीं कर सकता। आख़िरकार, संविधान एक मशीन की तरह निर्जीव चीज़ है। इसे जीवन मिलता है इसे नियंत्रित करने और चलाने वाले लोगों से, और आज भारत को और कुछ नहीं बल्कि ऐसे ईमानदार प्रतिनिधियों के समूह की ज़रूरत है जिनमे देशहित स्वयं से आगे रखने का जज़्बा होगा। - डॉ राजेंद्र प्रसाद , संविधान सभा के अध्यक्ष
हमारा विश्व का सबसे लम्बा संविधान हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी धरोहर है। हमारे देश के शासन का यह मौलिक दस्तावेज़ हमें वो शक्ति देता है जिसे संसद भी छीन नहीं सकती। फ़ौलादी नैतिकता वाले कुशाग्र मस्तिष्कों ने इसको लिख कर यह सुनिश्चित किया कि संस्थाएँ नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम करेंगी न कि उनका दुरुपयोग शासन द्वारा अपने स्वार्थपूर्ण हितों के लिए किया जाएगा। सम्पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता देने के लिए सृजित की गई थी। वर्तमान व्यवस्था के आलोक में आपकी पहली प्रतिक्रिया होगी - “चलो, तब तो यह फ़ेल हो गया।” नहीं, यह फ़ेल नहीं हुआ, हमने इसे फ़ेल कर दिया। राजनीतिक वर्ग जनता को सूचनाएँ देने के बजाय उससे छुपा कर इसे अपने फ़ायदे के लिए उपयोग करने में सफल रहा है। प्रत्येक अच्छी तरह से काम कर रहे लोकतंत्र में दो प्रमुख संस्थागत शक्ति होती हैं एक, सरकार द्वारा शासन में अजेंडा तय करना, और दूसरा,सवाल पूछना या अन्य विधायी सदस्यों के द्वारा उस पर अंकुश लगाना। स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव को प्रमुखत: दोनों को मज़बूत करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया था। हालाँकि, चुनाव को राजनीतिक मशीनों के दुरुपयोग से अत्यधिक नियंत्रित किया जाता है| बिहार के मामले में, दोनों एजेंडा निर्माता और विपक्ष केवल अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं। वे मटर में फली की तरह काम करते हैं इसलिए, हमारी गंभीर समस्याओं को पूरे सिस्टम द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है इसके अलावा,ज्ञान की कमी के कारण हमारी समस्या का समाधान खोजने मे और सवाल करने मे असमर्थ हैं- उन्हें नहीं पता कि सार्वजनिक-नीति का क्या मतलब है,यह कैसे बनता है और इसका लक्ष्य क्या होना चाहिए। इसके अलावा, वे उन दावों के बावजूद किसी समूह का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, जो वे करते हैं, क्योंकि हम सभी 73 साल पहले जहाँ थे आज भी वहीं हैं, हमारे देश मे सबसे पीछे| नतीजतन, ऐसा लोकतंत्र जहाँ टोकन चैलेंज मात्र हो, वह आख़िरकार एक तानाशाही व्यवस्था की तरह ही चलेगा और अंतत: फ़ेल होने के लिए अभिशप्त है जैसा कि बिहार के मामले में हुआ है। यह चुनाव एक अवसर गँवाने जैसा होगा यदि सत्तारूढ़ दल या तथाकथित विपक्ष जीत जाएँ। सत्तारूढ़ दल बेशक अपनी सरकार को प्रश्न करेंगे नहीं और विपक्ष तो निस्सन्देह ही पॉलिसी ज्ञान से यों वंचित है कि सरकार को प्रश्न कर ही नहीं सकता। यह प्राथमिक कारण है जिसका हम इरादा करते हैं एक नई पार्टी का गठन करके प्रणाली को चुनौती देना जो सक्षम हो| हम सभी दलों के खिलाफ खड़े हैं ताकि इन पार्टियों ने पिछले सालों में जो निर्णय लिए या नहीं लिए उनको सवाल कर सकें |